वेद वाणी

वेद वाणी उषा प्रकाशमय है मैं भी इस ज्ञान प्रकाश को प्राप्त करूँ! उषाकाल क्षितिज को विस्तृत कर देता है, मैं भी अपने हृदयान्तरिक्ष को विशाल बनाऊँ! उषा में सब शक्तियां विकसित होती है, मै भी विकास वाला सुजात बनूँ! उषा से प्रेरणा प्राप्त कर सदा उत्तम कर्मों में लगा रहूँ! (महे नो अद्य बोधयोषो राये दिवित्मती! यथा चिन्नो अबोधय::सत्यश्रवसि वाय्ये सुजातेअश्वसुनृते! ४२१-३ व्याख्या हे दिवित्मती उष:न: अद्य महे राये बोधय याचिका अबोधय: प्रकाश वाली उषा हमें आज महा ऐश्वर्य के लिए जागरित करो! तुमसे हमें ऐसी प्रेरणा प्राप्त हो कि जिससे निश्चय पूर्वक हमें तुम इन इन बातों में जगाओ! १- सत्यश्रवसि वेद सब सत्य विद्याओं का भण्डार है हम सदा इन सत्य विद्याओं की प्राप्ति के लिए प्रमाद रहित होकर प्रयत्न में लगे रहें! हमारा मस्तिष्क व विज्ञान मय कोश सब सत्य ज्ञानों के नक्षत्रों से चमकने वाला हो! २- वाय्ये फैलाव में हम सदा जागृत हो हम अपने मनों को संकुचित न होने दें! हमारा मन विशाल होता जाये! ३- सुजाते उत्तम प्रादुर्भाव में विकास में हम अप्रमत्त हो! प्राणमय कोश में स्थित इन इन्द्रियों क...